बुधवार, 8 जून 2016

                                 माहेश्वरी वंशोत्पत्ति 



खंडेला नगर में सूर्यवंशी राजाओं में चौव्हान जाती का राजा खड्गल सेन राज्य करता था. इसके राज्य में सारी प्रजा सुख और शांती से रहती थी. राजा धर्मावतार और प्रजाप्रेमी था, परन्तु राजा का कोई पुत्र नहीं था. राजा ने मंत्रियो से परामर्श कर पुत्रेस्ठी यज्ञ कराया. ऋषियों ने आशीवाद दिया और साथ-साथ यह भी कहा की तुम्हारा पुत्र बहुत पराक्रमी और चक्रवर्ती होगा पर उसे 16 साल की उम्र तक उत्तर दिशा की ओर न जाने देना. राजा ने पुत्र जन्म उत्सव बहुत ही हर्ष उल्लास से मनाया. ज्योतिषियों ने उसका नाम सुजानसेन रखा. सुजानसेन बहुत ही प्रखर बुद्धि का व समझदार निकला, थोड़े ही समय में वह विद्या और शस्त्र विद्या में आगे बढ़ने लगा. देवयोग से एक जैन मुनि खड़ेला नगर आए और सुजान कुवर ने जैन धर्म की शिक्षा लेकर उसका प्रचार प्रसार शुरू कर दिया. शिव व वैष्णव मंदिर तुडवा कर जैन मंदिर बनवाए, इससे सारे राज्य में जैन धर्मं का बोलबाला हो गया.
एक दिन राजकुवर 72 उमरावो को लेकर शिकार करने जंगल में उत्तर दिशा की और ही गया. सूर्य कुंड के पास जाकर देखा की वहाँ 6 ऋषि यज्ञ कर रहे थे ,वेद ध्वनि बोल रहे थे ,यह देख वह आग बबुला हो गया और क्रोधित होकर बोला इस दिशा में मुनि यज्ञ करते हे इसलिए पिताजी मुझे इधर आने से रोकते थे. उसी समय उमरावों को आदेश दिया की यज्ञ विध्वंस कर दो और यज्ञ सामग्री नष्ट कर दो.
इससे ऋषि भी क्रोध में आ गए और उन्होंने श्राप दिया की सब पत्थर बन जाओ l श्राप देते ही राजकुवर सहित 72 उमराव पत्थर बन गए. जब यह समाचार राजा खड्गल सेन ने सुना तो अपने प्राण तज दिए. राजा के साथ 16 रानिया सती हुई.
राजकुवर की कुवरानी चन्द्रावती उमरावों की स्त्रियों को साथ लेकर ऋषियो की शरण में गई और श्राप वापस लेने की विनती की तब ऋषियो ने उन्हें बताया की हम श्राप दे चुके हे तुम भगवान गोरीशंकर की आराधना करो. यहाँ निकट ही एक गुफा है जहा जाकर भगवान महेश का अष्टाक्षर मंत्र का जाप करो. भगवान की कृपा से वह पुनः शुद्ध बुद्धि व चेतन्य हो जायेंगे. राजकुवरानी सारी स्त्रियों सहित गुफा में गई और तपस्या में लीन हो गई.
भगवान महेशजी उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर वहा आये, पार्वती जी ने इन जडत्व मूर्तियों के बारे में भगवान से चर्चा आरम्भ की तो राजकुवरानी ने आकर पार्वतीजी के चरणों में प्रणाम किया. पार्वतीजी ने आशीर्वाद दिया की सौभाग्यवती हो, इस पर राजकुवरानी ने कहा हमारे पति तो ऋषियों के श्राप से पत्थरवत हो गए है अतः आप इनका श्राप मोचन करो. पार्वतीजी ने भगवान महेशजी से प्रार्थना की और फिर भगवान महेशजी ने उन्हें चेतन में ला दिया. चेतन अवस्था में आते ही उन्होंने पार्वती-महेश को घेर लिया. इसपर भगवान महेश ने कहा अपनी शक्ति पर गर्व मत करो और छत्रियत्व छोड़ कर वैश्य वर्ण धारण करो. 72 उमरावों ने इसे स्वीकार किया पर उनके हाथो से हथिहार नहीं छुटे. इस पर भगवान महेशजी ने कहा की सूर्यकुंड में स्नान करो ऐसा करते ही उनके हथिहार पानी में गल गए उसी दिन से लोहा गल (लोहागर) हो गया (लोहागर- सीकर के पास, राजस्थान). सभी स्नान कर भगवान महेश की प्रार्थ्रना करने लगे.
फिर भगवान महेशजी ने कहा की आज से तुम्हारे वंशपर (धर्मपर) हमारी छाप रहेगी यानि तुम वंश (धर्म) से “माहेश्वरी’’ और वर्ण से वैश्य कहलाओगे और अब तुम अपने जीवनयापन (उदर निर्वाह) के लिए व्यापार करो तुम इसमें खूब फुलोगे-फलोगे.
अब राजकुवर और उमरावों ने स्त्रियों (पत्नियोंको) को स्वीकार करनेसे मना किया, कहा की हम तो धर्म से “माहेश्वरी’’ और वर्ण से वैश्य बन गए है पर ये अभी क्षत्रानिया (राजपुतनियाँ) है. हमारा पुनर्जन्म हो चूका हे, हम इन्हें कैसे स्वीकार करे. तब माता पार्वती ने कहा तुम सभी स्त्री-पुरुष हमारी चार बार परिक्रमा करो जो जिसकी पत्नी है अपने आप गठबंधन हो जायेगा. इसपर राजकुवरानी ने पार्वति से कहा की पहले तो हमारे पति राजपूत-क्षत्रिय थे, हथियारबन्द थे तो हमारी और हमारे मान की रक्षा करते थे अब हमारी और हमारे मान की रक्षा ये कैसे करेंगे तब पार्वति ने सभी को दिव्य कट्यार (कटार) दी और कहाँ की अब आपका पेशा युद्ध करना नहीं बल्कि व्यापार करना है लेकिन अपने स्त्रियों की और मान की रक्षा के लिए 'कट्यार' (कटार) को हमेशा धारण करेंगे. मे शक्ति स्वयं इसमे बिराजमान रहूंगी. तब सब ने महेश-पार्वति की चार बार परिक्रमा की तो जो जिसकी पत्नी है उनका अपने आप गठबंधन हो गया (एक-दो जगह उल्लेख मिलता है की 13 स्त्रियों ने भी कट्यार धारण करके गठबंधन की परिक्रमा की). इस गठबंधन को 'मंगल कारज' कहा गया. [उस दिन से मंगल कारज (विवाह) में बिन्दराजा मोड़ (मान) और कट्यार (कटार) धारण करके, 'महेश - पार्वती' की तस्बीर को विधिपूर्वक स्थापन करके उनकी चार बार परिक्रमा करता है इसे 'बारला फेरा' (बाहर के फेरे) कहा जाता है.) ये बात याद रहे इसलिए चार फेरे बाहर के लिए जाते है. सगाई में लड़की का पिता लडके को मोड़ और कट्यार भेंट देता है इसलिए की ये बात याद रहे - अब मेरे बेटीकी और उसके मान की रक्षा तुम्हे करनी है. जिस दिन महेश-पार्वति ने वरदान दिया उस दिन युधिष्टिर संवत 9 (विक्रम संवत ८) जेष्ट शुक्ल नवमी थी. तभी से माहेश्वरी समाज आज तक “महेश नवमी ’’ का त्यौहार बहुत धूम धाम से मनाता आ रहा है…..]
ऋषियों ने आकर भगवान से अनुग्रह किया की प्रभु इन्होने हमारे यज्ञ को विध्वंस किया और आपने इन्हें श्राप मोचन (श्राप से मुक्त) कर दिया इस पर भगवान महेशजी ने कहा - आजसे आप इनके (माहेश्वरीयोंके) गुरु है. ये तुम्हे गुरु मानेंगे. तुम्हे 'गुरुमहाराज' के नाम से जाना जायेगा. भगवान महेशजी ने कुवरानी चन्द्रावती को भी गुरु पद दिया. इन सबको दायित्व सौपा गया की, वह माहेश्वरियों को सत्य, प्रेम और न्यायके मार्गपर चलनेका मार्गदर्शन करते रहेंगे [माहेश्वरी स्वयं को भगवान महेश-पार्वती की संतान मानते है. माहेश्वरीयों में 'शिवलिंग' स्वरुप में पूजा का विधान नहीं है; माहेश्वरीयों में 'भगवान महेश-पार्वती-गणेशजी' की एकत्रित प्रतिमा / तसबीर के पूजा का विधान (रिवाज/परंपरा) है. कई शतकों तक गुरु मार्गदर्शित व्यवस्था बनी रही. तथ्य बताते है की प्रारंभ में 'गुरुमहाराज' द्वारा बताई गयी नित्य प्रार्थना, वंदना (महेश वंदना), नित्य अन्नदान, करसेवा, गो-ग्रास आदि नियमोंका समाज कड़ाई से पालन करता था. फिर मध्यकाल में भारत के शासन व्यवस्था में भारी उथल-पुथल तथा बदलाओंका दौर चला. दुर्भाग्यसे जिसका असर माहेश्वरियों की सामाजिक व्यवस्थापर भी पड़ा और जाने-अनजाने में माहेश्वरी अपने गुरूओंको भूलते चले गए. जिससे समाज की बड़ी क्षति हुई है और आज भी हो रही है.].
फिर भगवान महेशजी ने सुजान कुवर को कहा की तुम इनकी वंशावली रखो, ये तुम्हे अपना जागा मानेंगे. तुम इनके वंश की जानकारी रखोंगे, विवाह-संबन्ध जोड़ने में मदत करोगे और ये हर समय, यथा शक्ति द्रव्य देकर तुम्हारी मदत करेंगे.
जो 72 उमराव थे उनके नाम पर एक-एक जाती बनी जो 72 खाप (गोत्र ) कहलाई. फिर एक-एक खाप में कई नख हो गए जो काम के कारण गाव व बुजुर्गो के नाम बन गए है.

कहा जाता है की आज से लगभग 2500-2600 वर्ष पूर्व (इसवीसन पूर्व 600 साल) 72 खापो के माहेश्वरी मारवाड़ (डीडवाना) राजस्थान में निवास करते थे. इन्ही 72 खापो में से 20 खाप के माहेश्वरी परिवार धकगड़ (गुजरात) में जाकर बस गए. वहा का राजा दयालु, प्रजापालक और व्यापारियों के प्रति सम्मान रखने वाला था. इन्ही गुणों से प्रभावित हो कर और 12 खापो के माहेश्वरी भी वहा आकर बस गए. इस प्रकार 32 खापो के माहेश्वरी धकगड़ (गुजरात) में बस गए और व्यापर करने लगे. तो वे धाकड़ माहेश्वरी के नामसे पहचाने जाने लगे. समय व परिस्थिति के वशीभूत होकर धकगड़ के कुछ माहेश्वरियो को धकगड़ भी छोडना पड़ा और मध्य भारत में आष्टा के पास अवन्तिपुर बडोदिया ग्राम में विक्रम संवत 1200 के आस-पास आज से लगभग 810 वर्ष पूर्व, आकर बस गए. वहाँ उनके द्वारा निर्मित भगवान महेशजी का मंदिर जिसका निर्माण संवत 1262 में हुआ जो आज भी विद्यमान है एवं अतीत की यादो को ताज़ा करता है. 

माहेश्वरियो के 72 गोत्र में से 15 खाप (गोत्र ) के माहेश्वरी परिवार अलग होकर ग्राम काकरोली राजिस्थान में बस गए तो वे काकड़ माहेश्वरी के नामसे पहचाने जाने लगे (इन्होने घर त्याग करने के पहले संकल्प किया की वे हाथी दांत का चुडा व मोतीचूर की चुन्धरी काम में नहीं लावेंगे अतः आज भी काकड़ वाल्या माहेश्वरी मंगल कारज (विवाह) में इन चीजो का व्यवहार नहीं करते है.) पुनः माहेश्वरी मध्य भारत और भारत के कई स्थानों पर जाकर व्यवसाय करने लगे.........

जन्म-मरण विहीन एक ईश्वर (महेश) में आस्था और मानव मात्र के कल्याण की कामना माहेश्वरी धर्म के प्रमुख सिद्धान्त हैं. माहेश्वरी समाज सत्य, प्रेम और न्याय के पथ पर चलता है. कर्म करना, बांट कर खाना और प्रभु का नाम जाप करना इसके आधार हैं. माहेश्वरी अपने धर्माचरण का पूरी निष्ठा के साथ पालन करते है तथा वह जिस स्थान / प्रदेश में रहते है वहां की स्थानिक संस्कृति का पूरा आदर-सन्मान करते है, इस बात का ध्यान रखते है; यह माहेश्वरी समाज की विशेष बात है. आज तकरीबन भारत के हर राज्य, हर शहर में माहेश्वरीज बसे हुए है और अपने अच्छे व्यवहार के लिए पहचाने जाते है.

       समूचे समाज में महेश नवमी  समारोह  तैयारियां प्रारम्भ 

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यह अत्यन्त प्रसन्नता  की बात है कि केंद्रीय कार्यकारिणी समिति की सभा में किये गए गये अनुरोध  के  उपरांत हमारे समाज की सभी समितियों ने महेश  नवमी को समारोह पूर्वक मनाने  की तैयारियां शुरू कर दी हैं।  इस  महत्वपूर्ण आयोजन को लेकर सभी पदाधिकारियों में उत्साह है एवं जनगणना व अविवाहित युवाओं की  जानकारी एवं मंथन २०१६ का वितरण भी सभी  समाज बंधुओं को किया जा रहा है.

          महेश नवमी हमारे समाज का उत्पत्ति  दिवस है एवं   भगवान महेश हमारे आराध्य देवता हैं, केंद्रीय कार्यकारिणी का  यह भी प्रयास है कि  इस वर्ष हमारे 'आस्था स्थल' श्री सिद्धेश्वर महादेव मंदिर' अवंतिपुर बड़ोदिया में भी भगवन महेश का अभिषेक एवं पूजन कार्यक्रम आयोजित कर आशीर्वाद प्राप्त  जाये। इस हेतू आस पास  समितियों से अनुरोध किया जा रहा है.

          महेश नवमी के  आयोजन के उपरांत यह भी प्रयास है की शीघ्र वेब पोर्टल को ऑनलाइन कर सभी आई. टी. सेल के सदस्यों की वर्कशॉप आयोजित कर आवश्यक डेटा फीड करने के शुरुआत की  जाये।

           सभी समाजबंधुओं को महेश नवमी कार्यक्रम  सफलता हेतु अग्रिम शुभ कामनाएं एवं बधाई।

                                                                                जय महेश। 

इंदौर, ०८ जून २०१६ 



रविवार, 8 मई 2016

भोपाल समिति का आभार

केंद्रीय कार्यकारिणी की प्रथम सभा भोपाल में सम्पन्न

प्रति, 
अध्यक्ष महोदया,
अखिल भारतीय धा माहेश्वरी सभा 
स्थानीय समिति
भोपाल 

विषय :- सत्रहवीं केंद्रीय कार्यकारिणी की प्रथम सभा भोपाल में आयोजित करने हेतु हृदय से आभार।

महोदया, 

सत्रहवीं केंद्रीय कार्यकारिणी की प्रथम सभा भोपाल में आयोजित करने हेतु समूची केन्द्रीय कार्यकारिणी समिति की और से हार्दिक आभार स्वीकार करें । 

समाजबन्धुओं की आकांक्षा के अनुरूप भोपाल समिति ने आपके कुशल नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में इस high tech युग में ऐसी सभा आयोजित की जिसकी व्यवस्थाओं ने समाज के युवाओं एवं महिलाओं सहित सभी उपस्थित समाजबन्धुओं का मन मोह लिया । इस सफलतम आयोजन के लिए समूची भोपाल समिति को साधुवाद एवं आभार । 

भोपाल समिति ने वास्तव में महिला सशक्तिकरण की दिशा में निरंतर एवं समाज में सबसे पहले प्रयास प्रारम्भ किए जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण स्थानीय नारी शक्ति की इस सभा की व्यवस्थाओं में सक्रियता है, उनका योगदान स्तुत्य है । 

ऐसा माना जाता है कि जब जब भोपाल समिति ने सक्रियता से 
के का का को मार्गदर्शन प्रदान किया..तब तब समूचे समाज ने सक्रियता से कार्य किया है....ईश्वर से प्रार्थना है कि यह धारणा पुनः सच हो, अतः कृपया नियमित रूप से मार्गदर्शन प्रदान कर समाज हित के कार्यों को आगे बढ़ाने में सहयोग प्रदान करते रहें ।

उन सभी समाजबंधुओं का आभार जिन्होंने इस सभा में भाग लेकर अपनी उपस्थिति-सुझाओ एवं प्रेरणा से प्रोत्साहित किया एवं उन सभी का आभार जो सभा में तो नहीं आ पाए किंतु उन्होंने फ़ोन अथवा संदेश के माध्यम से मार्गदर्शन एवं शुभकामनाएँ प्रेषित कीं । 

इस सभा के उपरांत यह भरोसा करने का पर्याप्त आधार है कि सभी समाजबंधु के का का द्वारा चयनित प्रकल्पों को मूर्त रूप प्रदान करने हेतु तन मन धन से जुट जाएँगे । 

पुनः सप्रेम आभार ।  जय महेश । 

सादर, 

राजेंद्र बजाज 
महासचिव 
केंद्रीय कार्यकारिणी समिति 
अखिल भारतीय धा माहेश्वरी सभा 
इंदौर, ५ मई २०१६, गुरुवार

रविवार, 24 अप्रैल 2016

सत्रहवीं केंद्रीय कार्यकारिणी की प्रथम सभा भोपाल में ...

         सत्रहवीं केंद्रीय कार्यकारिणी की प्रथम सभा भोपाल में ... 



अखिल भारतीय धा महेश्वरी सभा की सत्रहवीं केंद्रीय कार्यकारिणी की प्रथम सभा दिनांक ०१ मई २०१६ रविवार को नार्मदीय भवन तुलसी नगर भोपाल में स्थानीय समिति भोपाल द्वारा आयोजित की जा रही है. 

सभा में केंद्रीय कार्यकारिणी, महिला संगठन एवं युवा संगठन के पदाधिकारी एवं स्थानीय स्तर से अध्यक्ष सचिव भी आमंत्रित हैं. 

 उल्लेखनीय है कि वर्ष २०१६ हमारे समाज संगठन की स्थापना का ४० वाँ  वर्ष है।  4-5-6 जून १९७६ को हमारे समाज का प्रथम अधिवेशन खंडवा में आयोजित किया गया था जिसमे संविधान पारित किया गया था. 

यह वर्ष युवा संगठन की स्थापना का २५ वांं रजत जयंती वर्ष भी है।  वर्ष १९९१ में इंदौर में युवा संगठन का प्रथम अधिवेशन आयोजित किया गया था जिसमे इस संगठन की आधारशिला रखी गयी थी।  

यह वर्ष हमारे पूर्वजों द्वारा स्थापित श्री सिद्धेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना का ८०१ वां वर्ष भी है. विक्रम संवत १२७२ में हमारे पूर्वजों ने ग्राम अवंतिपुर बड़ोदिया में इस मंदिर की स्थापना की थी।  केंद्रीय कार्यकारिणी का यह प्रयास है कि इस महान एवं प्राचीन धरोहर को समाज के 'आस्था स्थल' के रूप में पुनर्स्थापित किया जावे एवं प्रतिवर्ष एक दिवसीय मेला आयोजित यहाँ किया जाये। 

यह वर्ष अखिल भारतीय महिला संगठन द्वारा इंदौर में आयोजित प्रथम महिला अधिवेशन का पांचवां वर्ष भी है।  इस अधिवेशन के उपरांत समाज में सभी समितियों में महिलाओं की सक्रिय भूमिका सुनिश्चित हुई है।  
केंद्रीय कार्यकारिणी समिति ने समाज की जनगणना एवं अविवाहित युवक युवतियों की जानकारी एकत्रण का कार्य करने का निर्णय लिया है।  साथ ही समाज की समस्त जानकारी वेब पोर्टल www.maheshwarisabha.org  पर ऑनलाइन की जा रही है।  

अतः इस ऐतिहासिक वर्ष में आयोजित प्रथम सभा में उपरोक्त सभी विषयों पर चर्चा कर निर्णय लिए जाना है।  
                                                             जय महेश 





शनिवार, 2 अप्रैल 2016

     नवीन कार्यकारिणी का गठन एवं प्रथम बैठक भोपाल में..... 


केंद्रीय कार्यकारिणी समिति के गठन की प्रक्रिया अंतिम चरण में है।  विभिन्न स्थानीय समितियों एवं वरिष्ठ समाज बंधुओं से चर्चा के उपरांत कार्यकारिणी का गठन किया जा रहा है।  सर्वप्रथम समितियों का परिसीमन किया जा रहा है एवं पहली बार समाज में जिला अध्यक्ष का पद सृजन किया गया है।  कार्य की सुगमता एवं स्थानीय समितियों को मार्गदर्शन हेतु इस पद का सृजन कियागया है।  आपको जानकर प्रसन्नता होगी की हमारे समाजबंधु १० राज्य के लगभग १२० स्थानों पर निवासरत हैं।  साथ ही लगभग ६ देशों में हम  निवासरत हैं।  

जनगणना एवं विवाह योग्य युवक युवतियों की जानकारी एकत्रण के सम्बन्ध में कल श्री श्याममोहन  गुप्ता इंदौर एवं श्री शरद सोमानी जी खंडवा से विस्तार से चर्चा हुई एवं इस हेतु डिज़ाइन किये गए फॉर्मेट को अंतिम स्वरुप  प्रदान कर प्रेस को छपाई हेतु उपलब्ध कराया।  आगामी गुड़ी पड़वा दिनांक ८ अप्रैल २०१६ से इस महती कार्य को प्रारम्भ करने की योजना है।  

नवीन कार्यकारिणी की प्रथम बैठक स्थानीय समिति  भोपाल द्वारा आयोजित की जा रही है।  दिनांक १ मई को होने वाली इस सभा की तैयारियां यथा एजेंडा निर्धारण एवं आमंत्रण इत्यादि शीघ्र भेजे जा रहे है।  

                                                              । जय महेश - जय समाज। 

गुरुवार, 31 मार्च 2016

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अवन्तिपुर बड़ोदिया स्थित हमारे समाज के सिद्धेश्वर महादेव मंदिर का भ्रमण :- 


पिछले दिनों अवंतिपुर बड़ोदिया स्थित संवत १२७२ में हमारे पूर्वजो द्वारा निर्मित एवं सन १९९६ में श्री छोगालाल जी झवर द्वारा पुनर्निर्मित श्री सिद्धेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन एवं भ्रमण का अवसर प्राप्त हुआ।  

इस अवसर पर इछावर, कन्नोद, सेवदा, बैजनाथ, मैना, खामखेड़ा, इंदौर,अहमदपुर के समाजबंधुओं के साथ हमारे समाज के कुलगुरु श्री व्यास जी एवं मंदिर के रख रखाव समिति के पदाधिकारियों से भेंट हुई एवं मंदिर व समीप के गांव में स्थित कृषि भूमि की वर्तमान स्थिति की जानकारी सभी को प्राप्त हुई।  

दोपहर में सेवदा में सभी समाजबंधुओं, महिलाओं एवं युवाओं की बैठक हुई जिसमे इस मंदिर को ऐतिहासिक धरोहर के रूप में समाज के आस्था स्थल एवं तीर्थ के रूप में विकसित करने की संभावनाओं पर विचार  गया। सभी उपस्थित समाज जनों ने इसकी आवश्यकता जताई एवं आगामी केंद्रीय कार्यकारिणी की बैठक अवंतिपुर बड़ोदिया में आयोजित करने का सुझाव दिया। 

इस विचार को  आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ समाजबंधुओं से चर्चा हुई और शासकीय स्तर पर इस पुरातन धरोहर को सहेजने एवं सँवारने के लिए सहयोग लेने पर चर्चाएं प्रारम्भ हो चुकी है।  आगामी के का का की बैठक में इस बिषय पर प्रमुखता से चर्चा की जाएगी एवं हमारे समाज के धरोहर को सहेजने के लिए प्रयास किये जायेंगे. 

आप इस बारे में क्या सोचते है, अवश्य अवगत कराएं। 
                      - जय महेश। 


बुधवार, 30 मार्च 2016

आभार 

अखिल भारतीय धा माहेश्वरी सभा की नवीन  केंद्रीय कार्यकारिणी चुनने  पर आप सभी समाजबंधुओं का हार्दिक आभार। वास्तव में समाज ने बड़ी जिम्मेदारी सौपी है और आपके विश्वास पर खरा उतरने का हमारी कार्यकारिणी पूरा प्रयास करेगी।  
कन्नौद में संपन्न चुनाव के उपरांत हमने विभिन्न समितियों का भ्रमण कर समाज बंधुओं से मिलकर उनकी अपेक्षाओं को जानने का प्रयास किया एवं उसी के अनुरूप कार्यकारिणी का गठन एवं आगामी कार्ययोजना का निर्धारण कर रहे हैं। 
इन सभी बिंदुओं पर अगले ब्लॉग में आपसे से विस्तार से चर्चा होगी। 

जय महेश।